जेरूसलम इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

ये दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. इस शहर पर कई सारी सभ्यताओंने शासन किया है.

अब तक के इसके इतिहास में इस शहर को कम से कम २ बार नष्ट किया गया, ५२ बार इस पर आक्रमण किये गए, २३ बार इसकी घेराबंदी की गयी, ४४ बार इसे हार कर फिर से जीता गया.

१९८१ में इस प्राचीन शहर को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया और अब  ये दुनिया के उन हेरिटेज लिस्ट में शामिल है जो संकट में है.

कई दशकों से इजराइल और पलेस्टाइन के बिच के विवाद को लेकर ये शहर हमेशा सुर्खियोमे रहता है.

हम बात कर रहे है जेरूसलम या यरुशलम (Jerusalem) शहर की.

जेरूसलम पश्चिम  एशिया में स्थित, भूमध्यसागरीय और डेड सी के बिच जुडिअन पहाड़ो में एक पठार पर है. जेरूसलम ये शहर हमेशा चर्चा में रहता है. इस शहर का यहूदी ईसाई और इस्लाम इन तीनो धर्मो में विशेष महत्त्व है. जेरूसलम यहूदी धर्म के लिए लगभग ३००० वर्षों से, ईसाई धर्म के लिए लगभग २००० वर्षों से और इस्लाम के लिए लगभग १४०० वर्षों से पवित्र रहा है.

यहूदी मान्यता

यहूदी मानते है की इसी जगह पर उनके ईश्वर ने वो मिटटी संजोयी थी जिससे एडम (पहिला पुरुष)  का जन्म हुआ और यही पे उनके पैग़मबर अब्राहम से ईश्वर ने उनके बेटे इज़्हा की बली मांगी. बली देने के लिए उन्हें जिस जगह बुलाया था वहा अब्राहम पुहचे और इज़्हा को बली चढाने लगे उतने में ईश्वर ने एक फरिश्ता भेजा. उसके पास एक भेड थी. ईश्वर ने अब्राहम के समर्पण की तारीफ की और इज़्हा के जगह भेड की बली स्वीकार कर के इज़्हा की जिंदगी बक्श दी. बलिदान की ये घटना टेम्पल माउंट पर हुई थी जो जेरूसलम में स्थित है. किंग सोलोमन ने इस जगह पर एक भव्य मंदिर बनवाया था जिसे फर्स्ट टेम्पल (First Temple) कहा गया.

बेबीलोन साम्राज्यने जब जेरूसलम पर आक्रमण किया तो उन्होंने फर्स्ट टेम्पल को नष्ट कर दिया था. लेकिन कुछ सदियों बाद यहुदियोंने पुनः मंदिर की स्थापना इसी स्थान पर की इसे सेकंड टेम्पल (Second Temple) कहा गया. इस मंदिर के अंधरुनि भाग को यहूदी पवित्र से भी पवित्र मानते है. उस जगह केवल श्रेष्ट पुजारियो को ही प्रवेश था. आम लोगो का उस स्थान पर प्रवेश वर्जित था.

आगे चल कर जेरूसलम पर रोमन साम्राज्य का आक्रमण हुआ और उन्होंने सेकंड टेम्पल को नष्ट कर दिया. लेकिन इसकी एक दिवार आज भी अस्तित्व में है जिसे वेस्टर्न वॉल (Western Wall) कहा जाता है. यही यहूदी अपने ईश्वर की प्रार्थना करते है.

इस्लामिक मान्यता

इस्लाम धर्म में मक्का, मदीना के बाद ये तीसरा पवित्र स्थान माना जाता है. मुस्लिम मानते है की सन ६२१ की एक रात्रि को पैग़मबर मोहम्मद मक्का से जेरूसलम आये और वही से वो जन्नत में गए. वहां उन्हें अल्ला से कुछ मुख्य आदेश मिले. इसलिए ये स्थान इस्लाम धर्म में भी पवित्र माना गया है. मुस्लिमोंने जब आक्रमण करके इस शहर को जीता तो वहा उन्होंने एक भव्य मज्जिद बनायीं जिसका नाम अल अक्सा रखा गया. जिसका अरबी में मतलब होता है सबसे ज्यादा दूर.

इस अल अक्सा मज्जिद के सामने ही डोम ऑफ़ द रॉक करके सुनहरे गुम्बद वाली इस्लामिक इमारत है. मुस्लिम मानते है की जेरूसलम में पैग़मबर मोहम्मद ने पहला कदम जहा रखा वहा अल अक्सा है और जहा से वो जन्नत को चढ़े थे वो जमीन डोम ऑफ़ द रॉक है. और ये दोनों इमारते उसी क्षेत्र में स्थित है जहा यहूदियोका सदियों पहले मंदिर था.

इसाई मान्यता

इसाई मानते है की इसा मसीहा ने इसी शहर में अपना उपदेश दिया और यही उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और यही पे वो पुनः जीवित हुए. इसाई ये भी मानते है की इसा पुनः अवतरित होंगे और उस समय जेरूसलम का महत्वपूर्ण योगदान होगा.

इज़राइली या यहूदी लोग भूमि पर यहूदी स्वदेशीता के आधार पर शहर के अधिकार का दावा करते हैं, उनका यह भी मानना है के खुद ईश्वर ने इस भूमि पर उन्हें अधिकार दिया है, यही उनकी उत्पत्ति हुई है और इज़राइलियों का वंश यही से बढ़ा है, उनके लिए यरुशलम उनकी राजधानी है.

इसके विपरीत, फ़िलिस्तीनी लोग, आधुनिक फिलिस्तानियो की दीर्घकालीन उपस्थिति और सदियों से इस क्षेत्र में रहने वाले कई अलग-अलग वंश के लोगों के आधार पर शहर के अधिकार का दावा करते हैंइसी के चलते कई सारी लड़ाईया भी हुई है और आज भी हो रही है. अब देखना ये है की इस प्राचीन शहर जेरूसलम के इतिहास में और कितने नाटकीय प्रकरण जुड़ेंगे.

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